उत्तराखंड

रानीखेत वायरस: शहर के नाम पर बीमारी का नामकरण, हाईकोर्ट पहुंचा मामला

अल्मोड़ा (Almora) जिले का रानीखेत (Ranikhet) शहर उत्तराखंड के मशहूर पर्यटन स्थलों (tourist attraction) में गिना जाता है, लेकिन इस शहर के नाम पर एक बीमारी (Ranikhet Disease) का नाम भी रखा गया है। जिस पर आपत्ति दर्ज करते हुए एक मामला हाईकोर्ट पहुंचा है। हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को ‘रानीखेत रोग’ के नाम पर विचार करने और उसका वैकल्पिक नाम सुझाने के निर्देश दिए हैं।

रानीखेत निवासी सतीश जोशी ने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए कहा है कि रानीखेत शहर उत्तराखंड के अन्य पर्यटन स्थल मसूरी, नैनीताल, की तरह ही खूबसूरत है। रानीखेत के नाम से इस शहर को पहचान मिली है, जो इस पर्यटन स्थल का गौरव बढ़ाता है। इस शहर के नाम पर मुर्गियों में होने वाली एक बीमारी का नाम रखा गया है, जो इस पर्यटन स्थल की छवि को खराब करता है। सतीश जोशी ने रानीखेत रोग का नाम बदलने की मांग की है। जिस पर हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिए हैं कि इस बीमारी का वैकल्पिक नाम सुझाते हुए एक हलफनामा तैयार करे। इसके लिए कोर्ट ने प्रदेश सरकार को 27 जून तक का समय दिया है।

क्या है ‘रानीखेत बीमारी’ का असली नाम?

रानीखेत रोग का पहला मामला 1926 में जावा (इंडोनेशिया) और 1927 में न्यूकैसल अपॉन टाइन (इंग्लैंड) शहर में दर्ज हुआ था। डॉयल ने 1927 में पहली बार पहचाना कि ये रोग एक वायरस के कारण होता है जो फाउल प्लेग से अलग है। उन्होंने इस वायरस का नाम NDV (Newcastle Disease Virus) और बीमारी को ‘न्यूकैसल’ नाम दिया। अमेरिकी सरकार की NCBI वेबसाइट के मुताबिक, यह महामारी इंग्लैंड के बाद कोरिया, भारत, श्रीलंका, जापान और फिलीपींस सहित दुनिया के बाकी हिस्सों में भी रिपोर्ट की गई।

बताया जाता है कि अंग्रेजों के जरिए ही न्यूकैसल बीमारी भारत पहुंची थी। 1939 में जब यह रानीखेत में फैली तो ब्रिटेन के विज्ञानियों ने अपने देश की बीमारी को चालाकी से भारतीय नाम ‘रानीखेत वायरस’ दे दिया। तब से आज तक दुनिया के कई देशों में न्यूकैसल को रानीखेत बीमारी के नाम से जाना जाता है, जबकि मूल रूप से इसकी उत्पत्ति ब्रिटेन के शहर में हुई थी।

कैसे पड़ा उत्तराखंड के इस शहर का नाम रानीखेत?

रानीखेत दो शब्दों से मिलकर बना है- रानी और खेत, इसको यह नाम स्थानीय कहानी पर मिला है। बताया जाता है कि यहीं पर राजा सुधारदेव ने अपनी रानी रानी पद्मिनी का दिल जीता था, जिन्होंने बाद में इस क्षेत्र को अपने रहने के लिए चुना और इसे यह नाम दिया,1869 में, अंग्रेजों ने यहां कुमाऊं रेजिमेंट का मुख्यालय स्थापित किया था। एक समय पर शिमला की बजाय रानीखेत को ब्रिटिश सरकार की गर्मी की राजधानी बनाए जाने पर विचार चल रहा था।

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