उत्तराखंड

उत्तराखंड पहुंचा चाइनीज पौंड हेरॉन पक्षी, हल्द्वानी में दिखा ग्रीन पिट वाइपर

Chinese Pond Heron Bird in Uttarakhand: भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में पाए जाने वाला चाइनीज पौंड हेरॉन पक्षी उत्तराखंड में मेहमान बनकर पहुंचा है। उत्तराखंड में इसे पहली बार लैंसडौन वन प्रभाग स्तिथ कोटद्वार क्षेत्र में देखा गया है। कोटद्वार के जौनपुर निवासी बर्ड फोटोग्राफर किरन बिष्ट ने इसे अपने कैमरे में कैद किया है। इधर नैनीताल (Nainital) जिले के हल्द्वानी में भी पहली बार हरे रंग का सांप (green pit vaipar) नजर आया है।

वन जीव विशेषज्ञों के अनुसार चाइनीज पौंड हेरॉन पक्षी आमतौर पर असम, राजस्थान और भूटान में ही दिखते हैं। उत्तराखंड में इस पक्षी का पहली बार दिखना अच्छी खबर है। बर्ड फोटोग्राफर किरन बिष्ट के अनुसार उन्हें 14 मई को लैंसडौन वन प्रभाग के कोटद्वार क्षेत्र में यह पक्षी दिखाई दिया। उत्तराखंड में इसकी मौजूदगी का अभी तक कोई रिकॉर्ड नहीं था। उन्होंने बताया कि इस पक्षी का यह ब्रीडिंग का समय है। ब्रीडिंग के लिए इस पक्षी ने पहली बार उत्तराखंड राज्य को चुना है। किरन पिछले चार साल से बर्ड फोटोग्राफी कर रही हैं।

चाइनीज पौड हेरॉन के साथ ही रेड नेप्ड आइबिस, इंडियन पिट्टा, ग्रे हेडेड फिश ईगल, ब्लेथ रेड वार्बलर, इंडियन गोल्डन ओरियल, लॉग टेल्ड ब्रॉडबिल, फायर कैप्ड टाइड समेत करीब 245 पक्षियों को किरन अपने कैमरे में कैद कर चुकी हैं। आमतौर पर यह पक्षी अधिक पानी वाले स्थान पर पाया जाता है। कीड़े, छोटी मछलियां और क्रस्टेशियंस इसका आहार हैं। मादा पक्षी एक बार में नीले-हरे रंग के 3 से 6 अंडे देती है। क़ई विदेशी पक्षी सर्दी और गर्मी दोनों ही सीजन में उत्तराखंड में प्रवास करते हैं। प्रवास खत्म होने के बाद अधिकांश पक्षी वापस अपने क्षेत्र में लौट जाती है। कोटद्वार इन पक्षियों को देखने के लिए दक्षिणी राज्यों से काफी अधिक पक्षी प्रेमी आते हैं।

हल्द्वानी में पहली बार दिखा ग्रीन पिट वाइपर

हल्द्वानी के कुसुमखेड़ा क्षेत्र में भी हरे रंग का सांप ‘ग्रीन पिट वाइपर’ नजर आया है। वन जीव विशेषज्ञों के अनुसार नैनीताल और आसपास के क्षेत्र में इसे पहले भी देखा गया है, लेकिन हल्द्वानी में यह पहली नजर आया है। वन विभाग ने कुसुमखेड़ा स्थित एक कबाड़ की दुकान से ग्रीन पिट वाइपर को रेस्क्यू किया। वन विभाग के अनुसार पेड़ों पर पाए जाने वाला यह सांप काफी विषैला होता है। आमतौर पर उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में तो यह नजर आता है, लेकिन मैदानी क्षेत्रों में इससे पहले इसे कभी नहीं देखा गया।

 

 

 

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