एक भ्रामक विज्ञापन या कुछ और भी रचे गए थे भ्रम, क्या है पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामला? कब और कैसे हुई शुरुआत? जानें पूरा मामला….
पंतजलि संस्थान और बाबा रामदेव इन दिनों एक भ्रामक विज्ञापन मामले को लेकर सुर्खियों में हैं। कोर्ट में मामले की लगातार सुनवाई चल रही है। मंगलवार को भी कोर्ट ने दलीलें सुनने के बाद अगली सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख तय की है, लेकिन ये पूरा मामला क्या सिर्फ एक भ्रामक विज्ञापन का है, या कुछ और भी भ्रम रचे गए थे, कैसे और कब इसकी शुरुआत हुई? जानते हैं इस रिपोर्ट में…
मामला इस तरह से है कि जुलाई 2022 में पतंजलि आयुर्वेद ने अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया, जिसका शीर्षक था ‘एलोपैथी द्वारा फैलाई गई गलतफहमियां।’ विज्ञापन में ये प्रचार किया गया था कि आंख-कान की बीमारियों, लिवर, थायरॉइड और अस्थमा में एलोपैथी इलाज नाकाम है। और दावा किया गया था कि इन बीमारियों का इलाज आयुर्वेद के पास है, पतंजलि की दवाईयां और योग इन्हें पूरी तरह से ठीक कर सकते हैं। पतंजलि के विज्ञापनों और एलोपैथी को लेकर रामदेव के दावों के खिलाफ अगस्त IMA ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जिसके बाद से केस की सुनवाई लगातार चल रही है।
माम्मले की शुरुआत यहां से नहीं हुई, शुरुआत है 2020 कोरोना काल से, जब रामदेव और पतंजलि का भारतीय मेडिकल एसोसिएशन (IMA) से विवाद शुरू हुआ। 2020 में जब कोरोना का दौर चल रहा था तब पतंजलि ने ‘कोरोनिल’ लॉन्च कर दावा किया कि इससे सात दिन में कोरोना खत्म हो जाएगा। लोगों ने इम्युनिटी बूस्टर समझकर इसे खूब खरीदा। फिर पतंजलि ने उत्तराखंड में सरकारी अफसरों से सिफारिश की कि वह कोरोनिल के मौजूदा लाइसेंस को इम्युनिटी बूस्टर से बदलकर कोविड-19 की दवा कर दें, ताकि वो पतंजलि के पास कोविड की पुख्ता दवा होने का भ्रम फैला सकें।
2021 में पतंजलि ने दावा किया कि उनके प्रोडक्ट को ‘स्पोर्टिंग मेजर’ की मान्यता मिल गई है, लेकिन आयुष मंत्रालय ने कहा कि कोरोनिल कोविड-19 का इलाज नहीं करता है। लेकिन 2021 में ही कोरोनिल को बाबा रामदेव ने नए रूप में लॉन्च कर इसे कोविड-19 की पहली साक्ष्य आधारित दवा बताया, लॉन्चिंग में तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन औऱ नितिन गडकरी मौजूद थे। तब इस दवा को लेकर खूब विवाद भी हुआ था। आयुष मंत्रालय ने पतंजलि से सवाल भी पूछे थे। हर्ष वर्धन से भी जवाब तलब किया गया था।
अब आया 2022, जब पंतजलि ने अखबारों में आधे पेज का विज्ञापन छपवाकर एलोपैथी को नाकाम इलाज कहा। जिस पर IMA ने अगस्त 2023 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। कोर्ट ने नवंबर, 2023 में पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन पर अस्थायी रोक लगाई। पतंजलि ने आश्वासन दिया कि भविष्य में इस तरह के एड जारी नहीं करेंगे, लेकिन कुछ दिन बाद ही फिर भ्रामक एड प्रसारित किए गए।
इसे लेकर जनवरी 2024 में IMA ने फिर कोर्ट पहुंचकर पंतजलि की ओर से दिसम्बर 2023 और जनवरी 2024 में जारी किए विज्ञापन कोर्ट के सामने रखे। और आरोप लगाए की पंतजलि इन विज्ञापन के जरिये लोगों में एलोपैथी इलाज को लेकर भ्रम फैला रही है। फरवरी 2024 में न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने पंतजलि के गुमराह करने वाले विज्ञापनों पर रोक लगा दी। साथ ही ये भी कहा कि पतंजलि आयुर्वेद ने उनके आदेश का उल्लंघन किया है, कंपनी सफ़ाई दे कि उनके ख़िलाफ़ अवमानना कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। पतंजलि से अगली सुनवाई से पहले जवाब तलब किया गया।
मार्च 2024 की सुनवाई के दौरान कोर्ट को पता चला कि पतंजलि ने अवमानना नोटिस का जवाब नहीं दिया है। इसके बाद रामदेव और बालकृष्ण को ख़ुद कोर्ट के सामने पेश होने के लिए कहा गया। दो दिन बाद पतंजलि के प्रबंध निदेशक बालकृष्ण ने कंपनी की तरफ़ से बिना शर्त माफ़ी मांगी।
2 अप्रैल, 2024 को रामदेव और बालकृष्ण ने अदालत में पेश होकर बिना शर्त कोर्ट से माफ़ी मांगी, लेकिन जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली ने माफ़ी नहीं स्वीकारी। पतंजलि की तरफ़ से सीनियर वकील बलबीर सिंह ने कहा कि उनके मुवक्किल ख़ुद कोर्ट में मौजूद हैं और ख़ुद माफ़ी मांगने के लिए तैयार हैं। इसके बाद वकील ने हाथ जोड़कर बेंच के सामने माफी मांगी। कोर्ट ने विस्तृत हलफनामा दाखिल करने को कहा।
अब अप्रैल 2024 को फिर सुनवाई हुई जिसमें पतंजलि ने बेंच के सामने जानकारी दी थी कि उन्होंने 67 अख़बारों में माफ़ीनामा छपवाया था। जिसमें 10 लाख रुपये का ख़र्च आया, इस पर कोर्ट ने उनसे पूछ लिया कि क्या ये माफ़ीनामा उतने ही बड़े साइज के थे, जितने बड़े उनके ‘भ्रामक’ विज्ञापन होते हैं। अदालत ने कहा कि रामदेव और बालकृष्ण ने अख़बार में जो माफ़ी छपवाई है, वो योग्य नहीं है. बेंच ने कहा कि माफ़ीनामा वाले विज्ञापनों की कटिंग उन्हें भेजी जाए। कहा, हमें इसका असली साइज़ देखना है. ये हमारा निर्देश है. जब आप कोई एड छापते हैं, तो इसका मतलब ये नहीं कि हम उसे माइक्रोस्कोप से देखेंगे. सिर्फ पन्ने पर न हो, बल्कि पढ़ा भी जाना चाहिए।
रामदेव और बालकृष्ण को निर्देश मिले हैं कि अगले दो दिनों के भीतर ऑन रिकॉर्ड माफ़ीनामा जारी करें। अब अगली सुनवाई 30 अप्रैल को होगी।