उत्तराखंड

विश्व गौरैया दिवस:  ओरी! चिरैया, अंगना में आजा….विश्व गौरैया दिवस पर लें गौरैया के अस्तित्व को बचाने का संकल्प

 

: चीन में गौरैया मारने से करोड़ों लोगों ने गंवाई थी जान

 : विश्व में 20 मार्च को मनाया जाता है गौरैया दिवस

रुदपुर: घर आंगन में चीं चीं करती गौरैया विलुप्त होते जा रही है। इनका शोर कुछ हद तक पहाड़ों में तो सुनाई देता है, लेकिन शहरों में अब इनकी प्यारी आवाज सुनने को नहीं मिलती। कभी घर की छतों पर बैठकर चहकने वाली ये गौरैया मोबाइल टावरों से पैदा होने वाले रेडिएशन और घटते पेड़ों की वजह से गायब हो रही है। आज विश्व गौरैया दिवस दिवस के मौके पर आइए चिड़ियों का वजूद बचाने का संकल्प लें।

कुछ समय पहले लोग घरों की छत पर गेहूं सुखाते थे तो गौरैया को दानापानी मिल जाता था। अब छत में गेहूं नहीं दिखाई देते। वन्य जीव विशेषज्ञों का कहना है कि घरों के आसपास ही
गौरैया को वास स्थल उपलब्ध कराएं तो इन्हें संरक्षित किया जा सकता है।

गौरैया की छह तरह की प्रजातियां
गौरैया की देश-विदेश में छह तरह की प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेड स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो शामिल है। शहरों में पाई जाने वाली स्पैरो को हाउस स्पैरो कहा जाता है। यही प्रजाति हमें अपने घरों के आसपास चहकती- फुदकती नजर आती है।

इंसानी आदतों से आबादी से दूर
: गौरैया के लगातार कम होने का कारण इसके वास स्थलों का कम होना है। गौरैया जिन खेतों, घास के मैदानों में निवास करती थी, वहां अब कालोनियां हो गयी हैं।
: सुरमार्केट कल्चर के कारण पुरानी पंसारी की दुकानें घट रही हैं। जिससे गौरैया को दाना नहीं मिल पाता।
: मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों को भी गौरैया के लिए हानिकारक माना गया है।
: ज्यादा तापमान भी गौरैया सहन नहीं कर सकती। और प्रदूषण से बढ़ रहा तापमान इसके लिए जानलेवा बन रहा है।

गौरैया मारने से चीन में भुखमरी, करोड़ों लोगों की हुई थी मौत

गौरैया हमारे भविष्य के लिए कितनी आवश्यक है। इसे हम चीन के कलंकित इतिहास से समझ सकते हैं। यहां एक आदेश पर करोड़ों गौरैया मार दी गयी। जिससे भुखमरी पैदा हुई और करोड़ों लोग मर गए। जिसके परिणाम में भारत पर 1962 का युद्ध भी थोप दिया गया।

 

मक्खी, मच्छर और गौरैया को मारने के आदेश

1958 से शुरू होने वाली चीन की दूसरी पंचवर्षीय योजना (जिसे सेकेंड ग्रेट लीप फारवर्ड भी कहते हैं) के तहत माओ ने आदेश दिया कि ग्रेट पेस्ट्स कैंपेन के तहत मक्खी, मच्छर और चूहों के साथ गौरैया का संपूर्ण सफाया कर दिया जाए। इस कत्लेआम का नेतृत्व खुद कम्युनिस्ट पार्टी कर रही थी। दरसल चीन के विज्ञानियों ने बताया कि एक गौरैया वर्ष में दो किलोग्राम अनाज खा जाती हैं, फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाती है। गौरैया मार दी जाएं तो 40-50 लाख टन अनाज बच सकता है, जिससे देश में भुखमरी का अंत हो जाएगा।

एक आदेश पर मार दी गयी 25 करोड़ गौरैया

चीन की साइंटिफिक अकादमी कहती है कि 25 करोड़ गौरैया इस दौरान मार दी गईं, जबकि स्वतंत्र एजेंसियों का दावा है कि कम से कम एक अरब गौरैया सीधे रूप से मार दी गईं। गौरैया के अंडे नष्ट कर दिए गए, बच्चों को मार दिया गया और घोंसलों को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया। इसके अलावा 1.5 अरब के आसपास चूहे मार दिए गए, 10 करोड़ किलो मक्खियां और 1 करोड़ किलो मच्छरों को मारने का दावा भी कम्युनिस्ट पार्टी ने किया।

भुखमरी से 5 करोड़ लोगों की हुई थी मौत

गौरैया मारने का दुष्परिणाम जल्द ही चीन में देखने को मिले। खुद सरकार का रिकार्ड कहता है कि 1958 में अनाज उत्पादन में 15 प्रतिशत की गिरावट आई, जबकि 1959 में अनाज का उत्पादन 70 प्रतिशत गिर गया, नतीजा चीन में भयानक स्थितियां उत्पन्न हो गईं। चीन का सरकारी रिकार्ड कहता है कि 1959 से 1962 तक पांच करोड़ लोग भूख के कारण जान गंवा बैठे।

 

धन सिंह बिष्ट

धन सिंह बिष्ट संपादक – दैनिक वार्ता +91 9720246373

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